शब्दों मे ऐसी चिंगारी समायी हुई है कि जो कभी तो जागृति के आरम्भ का कारन बन जाये और कभी तो दिल घायल करने कि तलवार !
यह चिंगारी शब्दों की या दिल मे रौशनी जगा देती है या जला के अन्धेरा कर देति है |
शब्दों को तराशा जाये तो उनके मोल का आभास होता है.... नासमझी मे उन्हें व्यर्थ में खर्च ना दें |यह चिंगारी शब्दों की आसानी से बुझती नहीं !
रोज़ सोचते रहे कि तुम्हे भूल जाएँ
मगर रोज़ दिल तस्सली देता कि तुम समझोगे दिल की ज़ुबान को। ...
उम्मीद थी कि तुम चाहत की गहराईओं में समा जाओगे
भूल गए थे कि उनको जस्बादों की क्या क़दर होगी जो दिल को एक बेजान खिलौना समझते हैं ...
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