एक औरत अगर फरिश्ता हो तो उस घर में जन्नत ...
एक औरत अगर ना हो फरिश्ता तो उस घर में जहन्नुम ...
यह तो आदमी पर निर्भर है कि वोह किसे चुने अपना हमसफर
यह तो वही तय करेगा कि उसे टीका चाहिए या कलंक ...
तक़दीर एक पल में फैसलों के ज़रिये बदल सकती है
जो एक बार लिख दिया जाए तो बदल नहीं सकता और अगर बदले भी तो वक़्त बीत जाता है
रह जाती है बस तो करवाहट भरी यादें ...
एक औरत अगर ना हो फरिश्ता तो उस घर में जहन्नुम ...
यह तो आदमी पर निर्भर है कि वोह किसे चुने अपना हमसफर
यह तो वही तय करेगा कि उसे टीका चाहिए या कलंक ...
तक़दीर एक पल में फैसलों के ज़रिये बदल सकती है
जो एक बार लिख दिया जाए तो बदल नहीं सकता और अगर बदले भी तो वक़्त बीत जाता है
रह जाती है बस तो करवाहट भरी यादें ...