शब्दों मे ऐसी चिंगारी समायी हुई है कि जो कभी तो जागृति के आरम्भ का कारन बन जाये और कभी तो दिल घायल करने कि तलवार !
यह चिंगारी शब्दों की या दिल मे रौशनी जगा देती है या जला के अन्धेरा कर देति है |
शब्दों को तराशा जाये तो उनके मोल का आभास होता है.... नासमझी मे उन्हें व्यर्थ में खर्च ना दें |यह चिंगारी शब्दों की आसानी से बुझती नहीं !
हर किसी को जस्बादों की परख़ नहीं
जिन्हें है उन्हें गहरी कीमत अदा करनी होती है ...
ऐसे ज़ख्म मिलते हैं जो वक़्त के साथ और नासूर हो जाते हैं और ज़माना उन्हें कुरेदता रहता है ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें