इलज़ाम जो उन पर लगें
खंजर बन कर दिल चीर देता है
जब हमने उन्हें चाहा है बिन शर्तों के
तो औरों को उनसे गिला क्या
आज भी वह हमारे मान हैं
हम मिलें नहीं तो क्या हुआ
फिर भी मोहब्बत ने हमारी ज़िन्दगी में आकर लिया
होते हैं कुछ रिश्ते ऐसे जो बिन मिलें ही बन जातें हैं करीब
और अज़ीज़ हो जाता है वह इंसान अपनों से भी ज़्यादा
मिले बगैर जो बन जाता है अपना
शायद इसी को कहतें हैं अनोखा सम्बन्ध
जिसमें एहसासों की गहराई हो
जो वक़्त नहीं मिटा सका
वह मोहताज नहीं किसी के मर्ज़ी का
ऐसे रिश्ते औरों को क्या समझाएं
जो जनम लेते हैं रब की मर्ज़ी से
और होते हैं अद्वित्य
खंजर बन कर दिल चीर देता है
जब हमने उन्हें चाहा है बिन शर्तों के
तो औरों को उनसे गिला क्या
आज भी वह हमारे मान हैं
हम मिलें नहीं तो क्या हुआ
फिर भी मोहब्बत ने हमारी ज़िन्दगी में आकर लिया
होते हैं कुछ रिश्ते ऐसे जो बिन मिलें ही बन जातें हैं करीब
और अज़ीज़ हो जाता है वह इंसान अपनों से भी ज़्यादा
मिले बगैर जो बन जाता है अपना
शायद इसी को कहतें हैं अनोखा सम्बन्ध
जिसमें एहसासों की गहराई हो
जो वक़्त नहीं मिटा सका
वह मोहताज नहीं किसी के मर्ज़ी का
ऐसे रिश्ते औरों को क्या समझाएं
जो जनम लेते हैं रब की मर्ज़ी से
और होते हैं अद्वित्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें