शब्दों मे ऐसी चिंगारी समायी हुई है कि जो कभी तो जागृति के आरम्भ का कारन बन जाये और कभी तो दिल घायल करने कि तलवार !
यह चिंगारी शब्दों की या दिल मे रौशनी जगा देती है या जला के अन्धेरा कर देति है |
शब्दों को तराशा जाये तो उनके मोल का आभास होता है.... नासमझी मे उन्हें व्यर्थ में खर्च ना दें |यह चिंगारी शब्दों की आसानी से बुझती नहीं !
खुश रहने कि भी शर्त रख दी गई है। .. अब अपने अपनों से भी दूर रहने कि कसम देते हैं... कैसे रिश्ते कैसे रिशतो की मजबूरियां कैसे रिश्ते कैसे उनके इम्तिहान मेहरबानियां या कीमतें यह तो तारीख ही तय करेगी
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