वह बिन मिले की चाहतें
वह बिन जाने मोहब्बतों का इज़हार खतों में
कहाँ से लाएं वही चाहतें
कहाँ से लाएं वही लम्हें ..
वक़्त है कि बेवफा हो चला
वक़्त को यह अब मंज़ूर नहीं।
शब्दों मे ऐसी चिंगारी समायी हुई है कि जो कभी तो जागृति के आरम्भ का कारन बन जाये और कभी तो दिल घायल करने कि तलवार ! यह चिंगारी शब्दों की या दिल मे रौशनी जगा देती है या जला के अन्धेरा कर देति है | शब्दों को तराशा जाये तो उनके मोल का आभास होता है.... नासमझी मे उन्हें व्यर्थ में खर्च ना दें |यह चिंगारी शब्दों की आसानी से बुझती नहीं !